हे हिंदुओं तुम जाति, पंथ, भाषावाद, क्षेत्रवाद, जनजातीय और राजनीतिक समूहों में बंटे हुये पेट्रोल और प्याज का रोना रोते रहो, जब कि धूर्त जिहादी, मक्कार पादरी, और सत्तालोभी राजनेता तुम्हारे पुनर्दासत्व और विनाश की तैयारी में लगे हैं

पेट्रोल, डीजल, सब्जी और तेल की कीमतों को लेकर दुनिया भर की बकबकबाजी मुझे परेशान कर रही है। मेरा क्रोध और भड़कता है जब कुछ मूर्ख हिंदू सोशल मीडिया पर कुटिल इस्लामवादियों, आपियों, कॉंग्रेसियों, वामपंथियों, चर्च और पाकिस्तानी और खालिस्तानी बाट्स द्वारा जलाये जा रहे योजनाबद्ध कुप्रचार से जुड़ जाते हैं।

तथ्यात्मक स्थिति यह है कि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव कभी नहीं रुकेगा। अपने अस्तित्व के ६ दशकों से मैंने इसे हर समय होते देखा है। आप मांग और आपूर्ति जैसे बाजार के नियमों से नहीं पार पा सकते। वे शाश्वत हैं। ये हमारे जीवन पर एक अस्थायी प्रभाव डालते हैं। अपनी जीवन शैली में कुछ सामान्य परिवर्तनों से इनसे निपटा जा सकता है। हमें अपनी पीठ थपथपानी चाहिए कि भारत ईश्वर की असीम अनुकंपा से कम से कम कुछ दशकों तक भूखमरी की समस्या से बचा रहेगा।

दूसरी वास्तविकता है कि सरकारी अनुदान एक जादूगर के खेल की तरह है। उसके दड़बों में जितने खरगोश होंगे, वह उतने ही अपनी टोपी से मंच पर निकाल कर तालियाँ पिटवा सकता है। उसकी टोपी खरगोश पैदा नहीं करती।

उदाहरण के लिए, केजरीवाल जैसा मक्कार जब एक पियक्कड़ पंजाबी सांढ़ को शराब पिला के लूटेगा, तब ही वो उस सांड की अपने आप को सुपर स्मार्ट समझने वाली मुफ्तखोरी और डिस्काऊंट सेल की आदी हो चुकी मूर्ख बीवी को मुफ्त में बस यात्रा करायेगा। दूसरे शब्दों में, ये जो सरकार के ‘मुफ्त उपहार’ हैं ना वो सब आप की जेब काट के ही बाँटे जा रहे हैं। ये ईसाई स्कूलों में क्रिसमस के पेड़ पर टंगे खिलौनों की तरह है जो बच्चे के माँ बाप ही खरीद के देते हैं, कोई सान्ता क्लाज नहीं दे जाता उन्हें।

इसका मतलब है कि अगर आप किसी राजनेता को वोट देते हैं क्योंकि उसने बिजली पानी मुफ्त कर दी है तो आप मूर्ख हैं। वास्तव में सभी राजनेता, नौकरशाह और सरकारें आप के पैसे पर पलते हैं। वे सेवा प्रदाता हैं, निर्माता नहीं। आप निर्माता हैं। किसी देश की जीडीपी उसकी सरकार, राजनेताओं और नौकरशाहों की वजह से नहीं बढ़ती है। यह आपकी कड़ी मेहनत के कारण ऊपर जाती है जब कि कुशल नौकरशाही और दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व आप के रास्ते में आने वाली अड़चनें हटाते हैं।

तो जब आप वोट देने जाते हैं असली मुद्दे और प्राथमिकताएं क्या हैं जिन्हें आपको ध्यान में रखना चाहिए? यहां आपको मुसलमानों और ईसाइयों और उनके वोट देने के तौर तरीकों से कुछ सबक सीखना चाहिए। वे संगठित समुदायों के रूप में मोलभाव करते हैं और स्पष्ट रूप से परिभाषित उद्देश्यों के साथ रणनीतिक मतदान करते हैं। वे जानते हैं कि वे किसलिए मतदान कर रहे हैं और इसके प्रति लापरवाह नहीं हैं। वे मुफ्त पानी, बिजली और बस की सवारी और सस्ते पेट्रोल के लिए अपने वोट नहीं देते, मुफ्तखोर हिंदुओं की तरह जो अपने वोट भिखारियों की तरह सस्ते में बेचते हैं।

नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि मुसलमानों और ईसाइयों ने मोदी सरकार की योजनाओं का जम के लाभ उठाया जो आबादी में उनके अनुपात से कहीं अधिक था। मुसलमानों और ईसाइयों ने विभिन्न मोदी योजनाओं के ३०% से ऊपर तक लाभ उठाये, आयुष्मान योजना से लेकर मुद्रा ऋण, कृषि सम्मान निधि और करोड़ों की छात्रवृत्तियों तक। बीजेपी के कुछ गधे नेता करोड़ों की इस सार्वजनिक धनराशि के क्रिसलामवादियों द्वारा किये गये संगठित घोटाले की जांच की मांग करने के बजाय, इसे मोदी सरकार की उपलब्धियों में से एक मान रहे हैं। (मैं इस पर एक अलग लेख लिखूंगा।)

अब क्या मोदी सरकार की तरफ से मुफ्त उपहारों की इस वर्षा का आनंद लेने के बाद ईसाई और मुसलमान बीजेपी को वोट देंगे? वे मार्क्सवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी, और ‘ईश्वर अल्ला तेरो नाम किस्म’ के हिंदू भी जानते हैं कि मोदी उन्हें सोने से भी आच्छादित कर दें तो भी मुसलमान और ईसाई उन्हें वोट नहीं देने वाले। नकवी और जफर सरेशवाला हजारों करोड़ की छात्रवृत्तियाँ बांटने के बाद भी चुनाव में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी जमानत जब्त करा लेगें।इक्का दुक्का राष्ट्रवादी मुसलमान या ईसाई संभवत: कमल निशान का बटन दबा दें क्यों कि राष्ट्र को वो अपने धर्म से ऊपर रखते हैं और मौलवियों और पादरियों के फतवे और फरमानों की चिंता नहीं करते। अगर नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और इंद्रेश जी वास्तव में ये मानते हैं कि वे इस्लाम और चर्च के विश्वास को ये कह कर जीत सकते हैं कि हर भारतीय हिंदु है, वो मूर्ख हैं।

इसलिए, यह एक स्थापित तथ्य है कि भारत के ‘क्रिसलामवादियों’ के लिए, सभी किस्म के चुनाव – ग्राम पंचायत, नगरपालिका, विधान सभाएं और संसद – एक ‘जिहाद’ और ‘धर्मयुद्ध’ हैं जो इस भावना से प्रेरित हैं कि किस तरह वो हिंदुओं पर अपना पूर्ण प्रभुत्व स्थापित करें। यह बचपन से ही उनके दिमाग में बैठाया गया था कि वे असभ्य मूर्तिपूजकों और काफिरों का सफाया करने के लिए पैदा हुए हैं। प्रत्येक मुसलमान और ईसाई, अपवादों को छोड़ कर, अपने सभ्यतागत इतिहास और कर्तव्य को जानता है। वे या तो ‘परोक्ष’ या ‘अपरोक्ष’ योद्धा है अपनी सभ्यता का।

दूसरी ओर हिंदुओं (सिखों, जैनियों, बौद्धों सहित) में सभ्यतागत जागरूकता का अभाव है। वे अपने नायकों को अच्छी तरह से नहीं जानते। जो कुछ भी वे जानते हैं वो विकृत ‘धर्मनिरपेक्षवादी’ इतिहास है जो उन्हें लज्जित और अपमानित करता है, उनके आत्मसम्मान को नष्ट करते हुये उन्हें एक ’पराजित जाति’ के अवसाद और कुंठा से भर देता है। इस से भी आगे बढ़ कर ये उनकी आँतरिक फूट और मतांतर को ईंधन और हवा देता है।

मैं सरस्वती शिशु मंदिर का छात्र था। यद्यपि किसी ने मुझे वहां मुसलमानों और ईसाइयों से घृणा करना नहीं सिखाया, लेकिन ईश्वर और माता-पिता की कृपा थी कि मैंने अपने राष्ट्रीय नायकों को जाना और अन्यान्य वैदिक ऋचाओं के बारे में सीखा जो मुझे मेरी सभ्यता और पौराणिक अतीत से जोड़ती थीं। लेकिन उन तीन वर्षों की शिक्षा ने भी मुझे अपनी हिंदु सभ्यता के योद्धा के तौर पर पूरी तरह सुसज्जित नहीं किया।

सभ्यताओं के इस युद्ध की प्रकृति क्या है? यह स्पष्ट रूप से हिंदू सभ्यता और इसके उद्दात्त सर्व समावेशी (Pluralist) चरित्र को नष्ट करने का प्रयास है। मूर्तिभंजक इस्लामवादियों ने लगभग ५०० वर्षों तक ऐसा करने का प्रयास किया; धूर्त ईसाईयों ने लगभग २०० वर्षों तक अपने हाँथ आजमाए; मार्क्सवादी लगभग ७० वर्षों से लगे हैं। हम किसी भी तरह इन आततायी आक्रमणों के बाद भी बचे रहे। विडंबना यह है कि प्लूरिज्म और लोकतंत्र के नाम पर होने वाले ये आक्रमण उनके द्वारा किये जाते हैं जो ना प्लुरिज्म और ना लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं और कई मूर्ख हिंदु इस स्पष्ट विरोधाभास को अनदेखा कर देते हैं।

ऐसा नहीं है कि ईस्लामवादियों और ईसाइयों में आँतरिक फूट और मतांतर और मतभेद नहीं है। वास्तव में ये हिंदुओं की अपेक्षा कहीं अधिक ग्रसित हैं आपसी वैमनस्य और मतभेदों से क्यों कि ये सत्तापरक सभ्यतायें है जो अपने अलावा शेष सब के विनाश की दुर्भावना से संचालित होती हैं। मार-काट, रक्तरंजित संघर्ष, अधिनायकवाद, इत्यादि उनके एकेश्वरवादी विचारधारा के अंतर्निहित आवश्यक तत्व हैं। (मध्य पूर्व की स्थिति इसका एक उदाहरण है)

लेकिन जब भारत की चुनावी राजनीति की बात आती है तो वे अपने मतभेदों को सुलझा लेते हैं। जब कोई मुसलमान वोट देने जाता है तो वह इस्लाम के नाम पर वोट करता है, न कि अशरफ, पसमांदा, शिया, सुन्नी, अहमदिया, बोहरा या किसी और रूप में। इसी तरह, एक ईसाई, ईसाईयत के नाम पर वोट करता है न कि प्रोटेस्टेंट, इवेंजेलिकल या कैथोलिक के रूप में। उनके लिए हर चुनाव एक युद्ध है अपनी सभ्यता और अपसंस्कृति के विस्तार का।

यहीं पर हिंदुओं को उनसे सबक सीखना है। अगले २० वर्षों के लिए उन्हें अपने सभी क्षेत्रीय, भाषाई, जातीय और संप्रदायगत मतभेदों को भुला कर एकजुट हो जाना चाहिये अपनी सर्वसमावेशी प्लूरिस्ट सभ्यता की रक्षा के लिए, और असहिष्णु मूर्तिभंजकों और जिहादियों के आक्रमणों और षडयंत्रों के विरुद्ध जो भारतीय लोकतंत्र, संविधान, और चुनाव प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुये अपना वर्चस्व बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

इसके लिये हिंदु सरकारों का और हिंदुवादी राजनेताओें का सत्ता में बने रहना बहुत आवश्यक है। कम से कम हमें इस बात का आश्वासन तो है कि समय आने पर वो हमारे साथ खड़े होगें सभ्यताओं के संघर्ष में। ये बहुत मायने रखता है। पेट्रोल की कीमतें बढ़ और गिर सकती हैं, टमाटर ८० या १० रुपये किलो में बिक सकता है, गैस सिलेंडर ५०० या ७०० रुपये में बिक सकता है, प्याज १५ रुपये से १५० रुपये किलो तक बिक सकता है। ये सब बहुत बड़ी चिंता के विषय नहीं हैं।

हम जानते हैं कि भाजपा सरकारें हिंदुओं के लिए एक बड़ा काम करती हैं। इसके नेता अपनी मूर्खता, अयोग्यता, अदूरदर्शिता और ‘पोलिटिकल करेक्टनेस’ की बीमारी’ के बाद भी, गंभीर संकट के समय में हमारे पक्ष में होंगे। ‘ ‘क्रिसलाम-ओ-वामी’ भी इसे जानते हैं। इसलिए वे बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।

उनके वैश्विक नेटवर्क लगातार बीजेपी, विहिप, आरएसएस और भारत और विदेशों में रह रहे हिंदु नेताओं को पर कींचड़ उछालते रहते हैं और दुष्प्रचार करते रहते हैं। वे योजनाबद्ध तरीके से एक सुनिश्चित रणनिति के अंतर्गत भारत-तोड़क संस्थाओं को वित्तीय पोषण देते हैं और CAA और कृषि कानूनों के विरुद्ध आधारहीन और अर्थहीन आँदोलन चलाते हैं। वे राहुल गांधी, केजरीवाल, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, स्टालिन आदि जैसे कुटिल और सत्तालोभी राजनीतिज्ञों को प्रोत्साहन देते हैं। वे अपने विशाल नेटवर्क का उपयोग करते हुये हिंदू-विरोधी झूठे समाचार और कथानकों को गढ़ते और प्रसारित करते हैं।

समय आ गया है कि हिंदु अपनी सुंदर और सनातन सभ्यता की रक्षा के लिये योद्धाओं के रूप में वैचारिक, सामरिक, और सामाजिक रुप से सुसज्ज और सन्नद्ध हों, अपने मतभेदों और क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठें, बड़ी तस्वीर को देखें और एकजुट हो एकात्म भाव से आगे बढ़ें। सभ्यताओं के इस युद्ध में उनकी विविधता, और सामाजिक अस्तित्व दांव पर लगा है। ये समय पेट्रोल और गैस की कीमतों पर अनायास बावेला मचाने का नहीं है।

राजेश कुमार सिंह

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